जन -जन का मन
सहित्य का
उच्च सिंहासन।
नहीं है
व्यक्ति -स्तुति गायन,
व्यक्ति नहीं है महान,
सर्वोपरि देशगान,
जन गण मन
उसी की आन मान शान,
सबसे महान।
नहीं है कवि
चारण या भाट,
जो बाँधे
मिथ्या सराहना के ठाठ,
किसी की बिछाए ,
किसी की
खड़ी करे खाट,
अतिशयोक्तियाँ विराट,
कवियों की चाहिए
नहीं लगनी हाट,
पर अब तो
लगी ही रहती है
हाट की बाट,
भले आठवें दिन लगे,
उनकी बुलंदियों के
सितारे तो जगें !
जातिगत मत
आधारित व्यवस्था,
पवित्रता से परे,
इस व्यवस्था में
अंध आस्था
ज्यों कुहर में गिरे,
कवि भी एक मानव,
मानवीय दौर्बल्य से
कैसे बचे?
सस्ती लोकप्रियता में
रंचे -बसे।
राजनीति से प्रेरित
उपाधियाँ सम्मान,
मात्र
नेता -स्तुति -गान के
कुशल आख्यान,
टी. वी. अख़बार में
प्रसारण प्रकाशन।
शॉलों प्रशस्तिपत्रों के
अम्बार बेशुमार,
नेता -नवनीत -लेपन ही
परोक्ष /प्रत्यक्ष आधार।
गली -गली
गाड़ियों कवि ,
ज्यों आमों के बाग
डाल - डाल कपि,
लतीफ़ेबाजी ठिठोली
काव्य की पराकाष्ठा
आम जन की
यहीं तक आस्था,
जो परोसा गया
वही तो खा सका!
अन्य रसास्वादन से
कैसे हो वास्ता ?
हँसोड़ों की गलियों से
हँस - कवियों का रास्ता,
हंस - कवियों का नहीं,
ये बात मित्रो!
पूर्ण सत्य और सही।
जमाना बहुमत का
बहूमत का,
भले ही
मूर्खमत हो!
सत्य की दुर्गति हो,
मताधिक्य ही निर्णायक,
संसद का विधायक,
जन - ग्रीवा का शायक,
आज का वही जनकवि,
वही माननीय जनगायक!
भले ही कोकिल दल मध्य,
कर्कश -स्वर -वायस।
चाटुकारिता नहीं
प्रबुद्धता की पहचान,
नहीं किसी सुकवि की
आन, मान ,शान।
अलग ही है
कवि का अपना अस्तित्व,
नवनीत - लेपन से इतर
दिनकर - सा
'शुभम' व्यक्तित्व,
वही है
सत्साहित्य का तत्त्व,
साहित्य का महत्त्व।
जागृत हो उठो
सजग सहित्यकारो!
सियासत के
धुँधले सितारों को,
निर्मल सहित्याकाश में
मत उभारो!
अपने अस्तित्व को
जानो पहचानो!
चापलूसों के
आँगन में
तम्बू मत तानो!!
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
www.hinddhanush.blogspot.in
19.09.19◆4.00अपराह्न
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