गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

ज्ञान ● [ सोरठा ]

 62/2024

                    

© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बंदर   जैसे   स्वाद, अदरक  का  जाने  नहीं।

ज्ञान न   उसको  नाद , जो  बहरा है कान से।।

रखे   घूमता  नित्य, ज्ञान - पोटली शीश  पर ।

क्या  किंचित  औचित्य, सदुपयोग जाने  नहीं।।


रखें   हृदय  में   धीर,  ज्ञान-पंथ  दुर्लभ   बड़ा।

चल  पाते    बस  वीर, दोधारी  तलवार     ये।।

धारण     करें   सुपात्र,  ज्ञान सिंहनी-दुग्ध    है।

ग्रहण    करेगा    मात्र, सोने  से निर्मित   वही।।


नारिकेल  फल   एक,बंदर  लुढ़काता    फिरे।

मानस  शेष  विवेक, ज्ञान नहीं उसको 'शुभम्'।।

नहीं  ज्ञान - आधार,  तन  पर धारित  वस्त्र का।

करके  देख   विचार,ज्ञान जीव का तत्त्व  है।।


करते   नहीं   बखान,  ज्ञानी अंतर-ज्ञान   का ।

ज्ञानी  की  पहचान,  समय पड़े तो काम   ले।।

नहीं   ज्ञान - पहचान, गाल बजाने से   कभी।

कभी न बढ़ता मान,ध्वनि -विस्तारक  यंत्र का।।


लेशमात्र  भी  ज्ञान,  भोंपू   में  अपना   नहीं।

उसका  करता   दान, वक्ता  जो  भी बोलता।।

दें उसको गुरु ज्ञान, प्रथम शिष्य पहचान  कर।

मिटता ज्ञान -निधान, मिलता अगर कुपात्र को।।


दें   विद्या का दान, संतति  की रुचि जानकर।

अनचाहा  नव  ज्ञान, बल से कभी न दीजिए।।


●शुभमस्तु !


15.02.024●9.00आ०मा०

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