गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

गुबरैला [बाल गीतिका[

 072/2024

              

© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


गोबरवासी       है     गुबरैला।

बनना  नहीं    हमें   गुबरैला।।


भाती   जिसे  गंध   गोबर  की,

कहलाता   है    वह    गुबरैला।


कलाकंद    रबड़ी   न   सुहाती,

बतलाता      सबको    गुबरैला।


छोटी -  सी   दुनिया  है उसकी,

छोड़   कहाँ      जाए   गुबरैला !


मतलब नहीं   किसी  से उसको,

स्वयं  लीन  है   नित    गुबरैला ।


क्षण  भर को  वह  बाहर  झाँके,

गोबर    में      जाता     गुबरैला।


गोबर   घर   गोबर    ही   खाना,

रंगमहल       कहता     गुबरैला।


'शुभम्'  बहुत मानव   भी   ऐसे,

कहते   हम   जिनको    गुबरैला।


●शुभमस्तु !


22.02.2024● 10.15आ०मा०

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