048/2024
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●©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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आज धर्म की पीठ पर, नेता हुए सवार।
उर में बहु रंगीनियाँ, दृग में भरा खुमार।।
राजनीति रंगीन है, रामनीति के कंध,
झंडे फहराए गए, विनत राम के द्वार।
द्विविधाएँ गहरा रहीं, मन है बहुत हताश,
रामालय पर छोड़ दें, सत्तासन का भार।
आम सदा चुसता रहा, राजनीति के हाथ,
मतमंगे चिंतित बड़े, करना बेड़ा पार।
सुनता एक न और की,रखता अपनी शेर,
भामाशाही सिर चढ़ी, 'मैं' का भूत सवार।
'मैं' कर्ता सर्वस्व 'मैं', मैं ही सबसे श्रेष्ठ,
जंगल का मैं शेर हूँ, कभी न मानूँ हार।
'शुभम्' लिखूँ इतिहास मैं,केवल अपने नाम,
खड़े रहो बाहर सभी,टपकाते मुख लार।
●शुभमस्तु !
05.02.2024●9.45आ०मा०
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