गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

प्रिय ऋतुराज आ रहा ● [ गीतिका ]

 068/2024

      

 समांत : अर

पदांत  : अपदांत

मात्रभार : 16.

मात्रा पतन : शून्य।


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


हवा  बह   रही    शुभद   सुभगतर।

गूँज  उठा  विटपों     में    मर -मर।।


पड़ती     है       पदचाप      सुनाई,

प्रिय  ऋतुराज  आ   रहा   घर -घर।


खेत   बाग   वन   सुमन  खिले बहु,

झूम  रहे    तितली   दल    मधुकर।


पीपल    निम्ब      शिंशुपा    झरते,

अवनी  पर   होता    नित   पतझर।


अमराई     में       कूके    कोकिल,

जपते  भक्त    शिवालय  हर -  हर।


सुमन     सुनिर्मित    कामदेव   का,

धनुष  तना   है   चलता   सर - सर।


'शुभम्'  हँस   रहा     बूढ़ा    पीपल,

लाल  अधर   स्मितियाँ     भर - भर।


●शुभमस्तु !


19.02.2024● 7.00 आ०मा०

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