065/2024
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
नेता निकला देश का, करने पूर्ण सुधार।
अपना ही करता सदा, बनकर बड़ा उदार।।
बनकर बड़ा उदार, झूठ आश्वासन देता।
टपके परधन लार, तिजोरी निज भर लेता।।
'शुभम्' जलेबी जीभ, रात - दिन अंडे सेता।
अपना ही कल्याण, किया करता जन नेता।।
- 2-
करना ही सब चाहते, अविकल आत्म सुधार।
किंतु न होना उचित है, बनें अन्य पर भार।।
बनें अन्य पर भार, खड़े हों निज पैरों पर।
शोषण का कर त्याग, न माँगें जा गैरों घर।।
'शुभम्' शुद्ध सुविचार, हृदय में अपने रखना।
होगा परम सुधार, हीनता कभी न करना।।
-3-
मानव-तन तुझको मिला, तज चौरासी लाख।
यौनि-यौनि भ्रमता फिरा,बना मनुज-तन साख।।
बना मनुज - तन साख,कर्म आधारित रचना।
कर ले कर्म - सुधार, कर्म से एक न बचना।।
'शुभम्' कीट कृमि रूप,ढोर खग पादप दानव।
तुझे नहीं हैं याद,मिला अब जीवन मानव।।
-4-
सीमा नहीं सुधार की, लगे रहें दिन - रात।
यह जीवन भी कम पड़े,यौनि-यौनि भ्रमि तात।।
यौनि-यौनि भ्रमि तात,यौनि बहु जीव भोगता।
कर्म-यौनि नर गात,मनुज तू क्यों न सोचता??
'शुभम्' करे सत्कर्म, कर्म ही तेरा बीमा।
होगा तभी सुधार, अनन्तिम आई सीमा।।
-5-
भज ले रे नर ईश को, करले यौनि-सुधार।
होना पड़े न कीट कृमि,पशु खग यौनि अपार।।
पशु खग यौनि अपार, चराचर में तू भटके।
डूबे तू मँझधार, शिला से जाकर अटके।।
'शुभम्' ईश का ध्यान, सदा ही मन से जप ले।
आना पड़े न लौट, मनुज तू ईश्वर भज ले।।
●शुभमस्तु !
16.02.2024●9.45 आ०मा०
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