बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

हँसते फूल ● [ बाल गीतिका ]

 052/2024

         

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●© शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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हँसते    और    विहँसते   फूल।

उर  में  नहीं    उमसते     फूल।।


मुरझाते  कुछ    डाली     पर,

देवों  पर   कुछ   चढ़ते  फूल।


माला  बन    कुछ   पड़ें   गले,

किंतु  न  जन से  लड़ते   फूल।


बनें    बीज    कुछ   पौध  नई,

दें   सुगंध  जहँ   बसते     फूल।


करते    नित      उपकार    बड़े,

सुंदरता     से      महके    फूल।


फल   बनते      हैं   फूलों    से,

सेव  संतरा     भरते        फूल।


'शुभम्'  सीख  देते   कमनीय,

बनें   फूल -  से   नर  ये   फूल।


●शुभमस्तु !


08.02.2024● 1.45प.मा.

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