बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

दाता उत्तम पाँच ● [ कुंडलिया ]

 055/2024

      

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                        -1-

दाता  सबका  ईश  है,  सबसे      श्रेष्ठ   उदार।

देता   है     माँगे   बिना,  लाता    सदा    बहार।।

लाता  सदा बहार, सदा  सुख- दुख  वह   जाने।

देने   का   आभार,   नहीं  फिर  भी नर    माने।।

'शुभम्'  उसी  के  रूप , पिता  जी जननी माता।

मान   सदा  उपकार, वही   हैं  जीवन  -   दाता।।


                        -2-

दाता उत्तम  पाँच  हैं,क्षिति  जल गगन  समीर।

अनल   पाँचवाँ तत्त्व   है,  देते सब  धर   धीर।।

देते    सब    धर  धीर,  माँगते   एक  न   पैसा।

जन्मा    दूजा   एक , न  माँगे   जग में     ऐसा।

'शुभम्'  ईश वरदान,मनुज  सुख इनसे    पाता।

नहीं   जानता     मोल,  न   ऐसा कोई    दाता।।


                        -3-

दाता  के  अभिमान  में, मनुज  हुआ है   चूर।

दर्शाए   निज  दान को,   भरा    अहं भरपूर।।

भरा    अहं   भरपूर,  नाम    छाया छपवाता।

अखबारों  में   खूब,  मित्र  को चित्र दिखाता।।

'शुभम्'  दिया जो   दान, जानता ईश विधाता।

मैं   कर्ता  दे    मान,   मुझे    मैं   तेरा   दाता।।


                          -4-

दाता   अब   दिखते  नहीं, ढोंगी  मिलें    अनेक।

देना  एक  छदाम   क्यों, दूषित  हुआ    विवेक।।

दूषित   हुआ   विवेक,   प्रदर्शन  करते     भारी।

ध्वनि  - विस्तारक  यंत्र, बजाकर करते   ख्वारी।।

'शुभम्'  तिलक दे   भाल, बनें वे संत   विधाता।

पीतांबर     धर     देह,   बने  वे  सबके    दाता।।


                           -5-

दाता   प्रभु-सा   एक  भी,मिला न जग   में नेक।

मौन     धार   देता   रहे,  मात्र  दान की    टेक।।

मात्र    दान  की    टेक,  नहीं  बदले में      लेता।

अभयदान नित ईश,मनुज  को सब  कुछ   देता।।

'शुभम्' न प्रभु को भूल,सभी के सिर  पर  छाता।

सबको  वह अनुकूल, जगत का प्रभु ही   दाता।।


●शुभमस्तु !


09.02.2024●8.30 आ०मा०

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