गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

पिचकारी [ बाल गीतिका]

 78/2024

              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


निकल  पड़ीं  हैं  अब   पिचकारी।

बरसाने   को    रँग     पिचकारी।।


फ़ागुन   आया    चटकीं   कलियाँ,

रुकती    नहीं    लेश    पिचकारी।


देवर     से    भाभी     यों    बोली,

क्यों  न अभी     लाते   पिचकारी।


बिना  झिझक  साली   यों कहती,

जीजा जी   ला   दो    पिचकारी।


नेता     को     जनता     ललकारे,

देखेंगे         चुनाव   -   पिचकारी।


बोले     श्याम   यशोदा     माँ  से,

राधा    से     खेलें       पिचकारी।


'शुभम्'    फाग  गा    रहे    हुरंगा,

चले   दृष्टि  की  दृग  -   पिचकारी।


शुभमस्तु !


29.02.2024◆ 9.45आ०मा०

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