78/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
निकल पड़ीं हैं अब पिचकारी।
बरसाने को रँग पिचकारी।।
फ़ागुन आया चटकीं कलियाँ,
रुकती नहीं लेश पिचकारी।
देवर से भाभी यों बोली,
क्यों न अभी लाते पिचकारी।
बिना झिझक साली यों कहती,
जीजा जी ला दो पिचकारी।
नेता को जनता ललकारे,
देखेंगे चुनाव - पिचकारी।
बोले श्याम यशोदा माँ से,
राधा से खेलें पिचकारी।
'शुभम्' फाग गा रहे हुरंगा,
चले दृष्टि की दृग - पिचकारी।
शुभमस्तु !
29.02.2024◆ 9.45आ०मा०
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