056/2024
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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देने लगा
थपकियाँ माधव
शीतल भीगे हाथ।
घुली हवा में
मादकता - सी
भ्रमर रहे पथ भूल।
रुकता नहीं
वक्ष पर कोई
पीला हरित दुकूल।।
सरसों की ले
पीली चादर
पिक गाती नित गाथ।
अलसी कलशी
धरे शीश पर
नाच रही सह गान।
चना मटर का
रंग बैंजनी
गेंदा खाए पान।।
पाटल शीश
उठा क्यारी में
दिए जा रहा साथ।
प्रोषितपतिका
धीरज खोए
कब आओगे श्याम।
नागिन सेज
लगे तन डंसती
बहुत सताए काम।।
नींद न रैन
चैन कब दिन में
एक तुम्हीं मम नाथ।
●शुभमस्तु !
09.02.2024●11.15 !आ०मा०
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