070/2024
छंद विधान:
1. सगण ×8 + लघु लघु
112 ×8 + 1 1 = 26 वर्ण
2. 12 ,14 पर यति।
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
वन बागनु फूलि रही सरसों,
भँवरा मँडराइ रहे वसुधा पर।
तरु कोकिल कूकि मचाइ रही,
बहु शोर कुहू करती अमुआ पर।।
अजहूँ पिय लौटि न आइ सके,
बिरमाइ गए कित जाइ तिया घर।
कत धीर धरूँ नहिं चैन परै,
इत ब्यारि बहे कंपतौ हिय पातर।।
-2-
ऋतुराज चले नव साज सजे,
वन - बागनु पेड़ लता हरषावत।
पतझार भयौ नित रूप नयौ,
कलिका नव फूलि रही मनभावत।।
अमुआ निबुआ तरु फूलि रहे,
नव बौर लदे भँवरा मँडरावत।
मधुमाखिहु चूसि रही रस कूँ,
सरसों अति झूमि रही सुख पावत।।
-3-
वन-बागनु नाचत मोर करें,
मन मोद भयौ निज तीय रिझावत।
गरजें घन अंबर बीच घने,
विरही मन में तिय को तरसावत।।
पिय बाट निहारि रही सजनी,
हिय में सुधि बारहिं बार करावत।
तटिनी अति तेजहि तेज बहै,
नित सागर में करि मेल समावत।।
-4-
ऋतु माधव की सरसाइ रही,
सब जीव सकाम भए सचराचर।
नव कोंपल फूटि रही तरु की,
ललछोंहि हरी भरि रूप उजागर।।
कटु नीम,बबूल, करील हरे,
वट,पीपल,आम भरे रस गागर।
निज पीव बिना तरुणी न रहै,
लखि राधिका श्याम भए नटनागर।।
-5-
शुभ फागुन मास बयार बहै,
सतरात बड़ौ तिय काम सतावत।
नित तीर बनी हिय फ़ारि रही,
पिय दूरि बसौ तनि' पास न आवत।
लतिका लिपटी तरु को कसि कें,
मम प्रीतम को बतियाँ समझावत।
भँवरा रस चूसि रहे सजनी,
तितली नित झूमि सुगीत सुनावत।।
●शुभमस्तु !
20.02.2024 ●10.45आ०मा०
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