शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

अनमोल [कुंडलिया]

 074/2024

               

© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                          -1-

मानव    जीवन    का   नहीं,मनुज जानते    मोल।

योनि    बड़ी    अनमोल    है,जीना इसको   तोल।।

जीना    इसको    तोल,  कर्म  जो जैसा     करता।

मिलती   वैसी   योनि,  उसी   में जीव    विचरता।।

'शुभम्'  करें  उपकार, बना मत तन मन    दानव।

नर   तन    है   उपहार, बने  ही रहना     मानव।।


                         -2-

अपना   चरित   सुधारना, हर मानव का   काम।

कोरा  कागज  अनलिखा,  काम लिखे या  राम।।

काम   लिखे    या  राम, आचरण  ऐसा   करना।

हो  जीवन  अनमोल, उदर निज श्रम   से भरना।।

'शुभम्'   स्वर्ण  आगार,  इसी  में देखे     सपना।

करता    हिंसाचार,  बिगड़ता  जीवन    अपना।।


                         -3-

कर्ता   ने    इस   सृष्टि   में,  दिया  कर्म  अनुरूप।

कोई    भिक्षु    फकीर   है, अन्य  बना   है   भूप।।

अन्य   बना   है    भूप,   प्राप्त अनमोल खजाना।

सब  सुख  हैं  उपलब्ध, साज सज्जा भी   नाना।।

'शुभम्'  कर्म  फल देख,बने मत धन जन   हर्ता।

यही   ईश - संदेश,    बने    मानव  शुभ    कर्ता।।


                           -4-

मानव - तन   के    अंग  सब,  होते हैं  अनमोल।

दस   इन्द्रिय  मन एक है, सबकी अलग हिलोल।।

सबकी  अलग  हिलोल,विविध अंगों  की  काया।

करे  न  मनुज  कुबोल,  सुदृढ़  है उनका  साया।।

'शुभम्' सभी  का  साथ, नहीं कर उनसे  लाघव।

बने    तभी     सम्पूर्ण,  सदा  उपयोगी   मानव।।


                         -5-

माता        भारत   भारती,   है अनमोल   महान।

अन्न   दूध  फल   दे  रही,  ताप   धरा   जलपान।।

ताप   धरा  जल  पान,   पाँच तत्त्वों की    धरती।

वायु  गगन  के साथ,  सदा सबका हित   करती।।

'शुभम्'    जानकर   मोल,इसे जो नर   अपनाता।

निशि दिन उसको प्राप्त, सदा शुभ भारत माता।।


●शुभमस्तु !


23.02.2024●8.00आ०मा०

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