बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

कवि कहते नवगीत [ नवगीत ]

 050/2024

         


  ©शब्दकार

 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

सीख न पाया

अभी आज तक

कवि कहते नवगीत।


गलियारे वे

छाँव गाँव की

नदिया नाव कछार।

गैया मैया

छाछ बिलौनी

ढेंकी ढाक कहार।।


याद न आती

गँवई गोरू

पूस माघ का शीत।


टिप-टिप करती

औलाती की

रिमझिम सावन धार।

छानी में कब

सोने देती

घर के बंद किवार।।


कुंडी खटका

बुला रही है

संकेतों में प्रीत।।


शकरकंद दो

गाड़ी भूभर

बीती  कल  की शाम।

भोर हुआ वह

भुनी मिल गई

पका पिलपिला आम।।


किया न दातुन

मुख ही धोया

खाई  हुए अभीत।


शुभमस्तु !

07.02.2024 - 12.15 प०मा०

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