बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

शृंगार- सभा ● [ दोहा ]

 49/2024

      

[आनन,अलकें,अभिसारी,आभा,आलता]

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●© शब्दकार 

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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          ●  सब में एक ●

आनन है अरविंद-सा,अलिवत चिकुराच्छाद।

मृगनयनी  हे  कामिनी, पद  पायल का   नाद।।

आनन  तेरा   देखकर, मम   दृग हुए  चकोर।

पल  भर  को  हटते  नहीं,खोए करें न  शोर।।


अलकें श्यामल  मेघ-सी, कहलाते  घनश्याम।

हे  मनमोहन नित बसो,मम  उर - गेह अकाम।।

अलकें अध्वर झूमतीं, श्यामल कान्ह-ललाट।

भँवरे   क्रीड़ामत्त  ज्यों, कलिंदजा  के    घाट।।


जब से देखी श्याम-छवि, मम अभिसारी  नैन।

मछली - से   तड़पें  सदा, पड़े न पल को चैन।।

अभिसारी प्रिय  के  बिना, रहती सदा  अधीर।

शंकित  मन  चंचल  रहे,  रह -रह उठती  पीर।।


आनन - आभा  खोलती, भेद हृदय  का  मीत।

दृग  पुतली हैं  गा रहीं,  निशा  अभिसरण गीत।।

आभा है कुछ और ही, पिया-मिलन  के  बाद।

हे    मृगनयनी   शोभने,    बदला पायल-नाद।।


लगा  आलता पाँव में, गजगामिनि  की  चाल।

बदल  गई   है  आज  तो, उछले  धरा  मराल।।

लगा  रहे  हैं  पाँव  में,   घोल आलता   आज।

कान्हा  राधा  से  कहें, करो  न किंचित   लाज।।

            ●  एक में सब ●

अभिसारी   आभा  प्रिये,

                          तव आनन  की  और।

विहँसे   अरुणिम आलता,

                             अलकें  हैं सिरमौर।।


●शुभमस्तु !


07.02.2024●8.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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