49/2024
[आनन,अलकें,अभिसारी,आभा,आलता]
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक ●
आनन है अरविंद-सा,अलिवत चिकुराच्छाद।
मृगनयनी हे कामिनी, पद पायल का नाद।।
आनन तेरा देखकर, मम दृग हुए चकोर।
पल भर को हटते नहीं,खोए करें न शोर।।
अलकें श्यामल मेघ-सी, कहलाते घनश्याम।
हे मनमोहन नित बसो,मम उर - गेह अकाम।।
अलकें अध्वर झूमतीं, श्यामल कान्ह-ललाट।
भँवरे क्रीड़ामत्त ज्यों, कलिंदजा के घाट।।
जब से देखी श्याम-छवि, मम अभिसारी नैन।
मछली - से तड़पें सदा, पड़े न पल को चैन।।
अभिसारी प्रिय के बिना, रहती सदा अधीर।
शंकित मन चंचल रहे, रह -रह उठती पीर।।
आनन - आभा खोलती, भेद हृदय का मीत।
दृग पुतली हैं गा रहीं, निशा अभिसरण गीत।।
आभा है कुछ और ही, पिया-मिलन के बाद।
हे मृगनयनी शोभने, बदला पायल-नाद।।
लगा आलता पाँव में, गजगामिनि की चाल।
बदल गई है आज तो, उछले धरा मराल।।
लगा रहे हैं पाँव में, घोल आलता आज।
कान्हा राधा से कहें, करो न किंचित लाज।।
● एक में सब ●
अभिसारी आभा प्रिये,
तव आनन की और।
विहँसे अरुणिम आलता,
अलकें हैं सिरमौर।।
●शुभमस्तु !
07.02.2024●8.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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