गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

विरहिन दुखी अपार ● [ गीत ]

 69/2024

     

© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


घिर - घिर आई

साँझ अँधेरी

विरहिन दुखी अपार।


मुख मलीन अति

आँखें पथ में

देखें   बाट   निहार।

कब आओगे

प्रीतम प्यारे

करती हृदय विचार।।


झीने की सीढ़ी

पर बैठी

उमड़ रहा उर प्यार।


कुहू - कुहू कर

कोकिल बोले

उठे   हिया  में  पीर।

और न कोई

घर में मेरे

बँधा सके  जो  धीर।।


दिवस न चैन

नींद नहिं रजनी

जीवन  मेरा  भार।


फूल - फूल पर

भँवरे झूमे

रस पीते चहुँ ओर।

मम रसलोभी

अजहुँ न आए

मन में उठे हिलोर।।


'शुभम्' बताओ

कब लौटेंगे

घर  मेरे  भरतार।


● शुभमस्तु !


20.02.2024●8.45आ०मा०

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