गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

फगुनाहट - पदचाप [ दोहा]

 77/2024

      

[महुआ,गुलाल,अंगूरी,पिचकारी,फगुनाहट]

                सब में एक

महके   महुआ मोहते, मृदुल  मंजु मदभार।

माधव मद  मनभावता, मेरे  मन  भिनसार।।

महुआ -सी मद मोहिनी,मोहित करती  देह।

कोना - कोना  पूर्ण  है, महक रहा मम गेह।।


पाटल सेमल खिल उठे, भरते लाल गुलाल।

फ़ागुन  आया  झूम  के,बिखरा गगन प्रवाल।।

मोहन  राधा  से मिले,तरु  तर सघन  तमाल।

छूते गौर कपोल दो, खिलते   लाल गुलाल।।


अंगूरी  तव देह  की, मादक  मृदुल  सुगंध।

मन  मेरा  चोरी  करे, करती मम मति अंध।।

अंगूरी  रस    से  भरे,   मृदुले    तेरे    नेत्र।

आकर्षित करते  सदा,तन-मन के मम क्षेत्र।।


पिचकारी कटि खोंस कर,निकले  ब्रज घनश्याम। 

निकलीं  गोपी   गेह   से,धर  तन वेश   ललाम।।

इत    मोहन   उत  राधिका, लिए ग्वालिनी    संग।

पिचकारी    कर    में    गहे , बरसाती   हैं    रंग।।


फगुनाहट   हर  ओर  है,  सचराचर     संसार।

निकली तिय अभिसार को,  भरी  देह मदभार।।

फगुनाहट- पदचाप  से,भावित तृण तरु जीव।

विरहिनि  तरसे  नेह  को, कब आएँगे    पीव।।


                  एक में सब

महुआ  फगुनाहट  भरे,गमके गाल  गुलाल।

अंगूरी  तन  मोहती, पिचकारी   दे    ताल।।


शुभमस्तु !


28.02.2024 ●8.00आ०मा०

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