63/ 2024
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आस्थाओं से
धर्म का
होता हुआ पलायन।
वैशाखियों पर झूमती
आज की सियासत।
इतिहास में लिखी जाती
रक्त की इबारत।।
वर्ण भेद फैलाती
नटी बनी डाहिन।
मैं ही युग निर्माता
मेरा ही इतिहास सब।
पहले जहाँ शून्य रहा
भरा है वह मैंने अब।।
स्तुति करो मेरी ही
मेरा ही शुभ गायन।
मेरे जैसा ज्ञानी जन
एक नहीं धरती पर।
मुझको ही जपते सब
भारत में अब घर -घर।।
'शुभम्' ईश अवतारी
नर दल में मैं लायन।
●शुभमस्तु !
15.02.2024●2.30 प०मा०
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