79/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
आया है मधुमास का,मादक मोहक मास।
जड़ - चेतन में छा गया, कवियों में अनुप्रास।।
कवियों में अनुप्रास, सुप्त अनुराग जगाया।
नर - नारी परिहास, निरंतर नेह नुमाया।।
'शुभम्' लताश्रय - वृक्ष, काम की फैली माया।
जिधर पड़े दृग- दृष्टि, दिखा माधव है आया।।
-2-
राधा के अनुराग का, आदि नहीं है अंत।
जहाँ श्याम राधा वहीं, वही राधिका - कंत।।
वही राधिका - कंत, बाग ब्रज घर मधुवन में।
भक्त धरा के संत, सभी के बसते मन में।।
'शुभम्' न पल को दूर, नहीं पल भर की बाधा।
सकल सृष्टि के मध्य, विराजित कान्हा राधा।।
-3-
सरवर में नित गूँजता, भ्रमर-कमल अनुराग।
होते ही प्रति भोर में, खुलते हैं अलि - भाग।
खुलते हैं अलि - भाग, सुमन में बंद निकलता।
रहे रात भर कैद, न होती उसे विकलता।।
'शुभम्' न तजता नेह,न भटके अलि भी दर-दर।
गुंजित अलि - अनुराग,नित्य ही प्रियकर सरवर।।
-4-
राजा का स्वागत करें, लता विटप संसार।
पीत पत्र नित त्यागते, करते तरु पतझार।।
करते तरु पतझार, बढ़े अनुराग निरंतर।
कोंपल निकलें चारु, सुमन खिलते बहु सुंदर।।
'शुभम्' हुआ जब भोर, पवन बहता है ताजा।
अलिदल करते शोर, आ रहा ऋतुपति राजा।।
-5-
मानव के अनुराग से, चलता है संसार।
युद्ध बैर अच्छे नहीं, प्रति कुटुंब परिवार।।
प्रति कुटुंब परिवार, प्रेम से जो रहता है।
खुलें प्रगति के द्वार,त्याग तप जो सहता है।।
'शुभम्' न उनके दुःख,कभी आते बन दानव।
करें मनुज यदि प्रेम, सुखी सब रहते मानव।।
शुभमस्तु !
01.03.2024●7.00 आ०मा०
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