311/2024
                
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
                         -1-
आया     है  आषाढ़  का, भीगा  पावस   मास।
बारिश की होने लगी,जन -जन को अब आस।।
जन - जन को अब आस,कृषक सारे नर - नारी।
ताकें    नीलाकाश,   सघन   हो  बारिश  भारी।।
'शुभम्'  देख तो मीत,श्याम घन जल भर लाया।
हर्षित    तरु, जन,ढोर,  खगों में मोदन   आया।।
                         -2-
छाए    घन  आकाश  में, बारिश  की है   आस।
ऋतुओं की  रानी  चली,भरती अवनि  सुवास।।
भरती    अवनि   सुवास,  हवा बहती   पुरवाई।
गातीं   भगिनि   मल्हार,  याद   घेवर की  आई।।
'शुभम्'   भेक   की   टर्र,  निशा में जुगनू  आए।
चमके   चपला   चौंक, घने  बादल नभ   छाए।।
                          -3-
भाता   है  किसको  नहीं,बारिश  नीर   -  नहान।
बालक नंग - धड़ंग   हो, दिखलाते निज   शान।।
दिखलाते  निज  शान,  गली छत पर  जा  कूदें।
झरें     मेघ  से   बूँद,  आँख  अपनी झट     मूँदें।।
'शुभम्'  मास आषाढ़, साल में फिर कब  आता! 
दे     आनंद     प्रगाढ़,जीव जन तरु को   भाता।।
                         -4-
बहते    नाले    नालियाँ,  सरिता पोखर   ताल।
बारिश होती झूमकर, पावस  का शुभ    काल।।
पावस का  शुभ  काल, केंचुआ  नहीं  गिजाई।
वीरबहूटी     एक,    न    देती    कहीं  दिखाई।।
'शुभम्' सत्य   यह   बात, आपसे कड़वी कहते।
मानवकृत    यह   घात,  पनारे रो  - रो   बहते।।
                          -5-
झूले    अब  पड़ते   नहीं, अमराई  की     छाँव।
नगरों   में   मज़दूरियाँ,  करते   हैं अब    गाँव।।
करते   हैं   अब  गाँव,   बाग  की  हुई  कटाई।
मनुज    खेलते   दाँव, न कोई भगिनी    भाई।।
'शुभम्'  समय  की चाल,मेघ बारिश को  भूले।
कंकरीट  के   रोड,    मृतक  सावन के    झूले।।
शुभमस्तु !
16.07.2024●9.30आ०मा०
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