शनिवार, 27 जुलाई 2024

झूला झूल रही बाला [ गीत ]

 319/2024

            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अमराई में

आम्र - शाख  पर

झूला  झूल रही बाला।


सावन आया

रिमझिम बरसीं

अंबर से सर - सर बूँदें।

है आनंद लीन

 रज्जू गह 

अपने युगल नयन मूँदें।।


हरी-भरी

धरती सरसाई

अंबर  में  घन का ताला।


इधर हवा

बहती पुरवाई

उधर पके टपका टपके।

बालक और

किशोर सभी मिल

आम उठाने को लपके।।


भूल गई

घर की सुधि सारी

पिए प्रेम की वह हाला।


झूला खींच 

दे रहीं सखियाँ 

बार - बार  लंबे झोटे।

बैठ नहीं

पातीं झूले पर

जिनके  देह-अंग मोटे।।


'शुभम्' उन्हें

डर लगता भारी

झूला लगे नहीं आला।


शुभमस्तु !


23.07.2024●4.15आ०मा०

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