297/2024
[ ओजस्वी,संज्ञान,विधान,सकारात्मक,अध्यवसाय]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
ओजस्वी मुख कांति की, आभा एक विशेष।
उर पर छोड़े नेक छवि,तज अंतर के द्वेष।।
कपट हृदय के त्यागिए,हो ओजस्वी रूप।
सत्कर्मों से ही बचे, नर का गिरना कूप।।
कर्मों का संज्ञान ले, ए मानव तू मूढ़।
सदा चले सन्मार्ग में, समय-अश्व आरूढ़।।
जब आए संज्ञान में,मानवता का मर्म।
तब जो सुधरे राह में, करे सर्व सद्धर्म।।
विधि का अटल विधान है,होता हेर न फेर।
निश्चित सबका काल है,लगे न पल की देर।।
हो विधान सम्मत वही, उचित हमारा काम।
सतपथ पर चलना सदा,मिल जाएँगे राम।।
सोच सकारात्मक रहे,अविचल मन की टेक।
मानव तन में देव का, जागे नेक विवेक।।
लोग सकारात्मक नहीं,प्रायः जग में आज।
स्वार्थलिप्ति हितकर नहीं,बिगड़ा हुआ समाज।।
अध्यवसाय में रत रहे, पाता वह गंतव्य।
सार्थकता - संचार हो, हो नर जीवन दिव्य।।
अपने अध्यवसाय से, चुरा रहे जो जान।
परजीवी समझें उन्हें, नर वे जोंक समान।।
एक में सब
सोच सकारात्मक सदा, अध्यवसाय-विधान।
ओजस्वी नर मन वही,लेता शुभ संज्ञान।।
शुभमस्तु !
03.07.2024●7.15आ०मा०
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बुधवार, 3 जुलाई 2024
कर्मों का संज्ञान ले [दोहा ]
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