शनिवार, 27 जुलाई 2024

नहा नदी में नेह की [दोहा ]

 320/2024

      

[ नदी, नीर, ताल, पोखर,माटी]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                  सब में एक


नहा नदी में  नेह की, नर - नारी अभिषेक।

नित्य करें रचना नई, साधक सरस विवेक।।

नीर   बरसता  मेघ से , पावस  बना कृपाल।

धन्य - धन्य जन जीव हैं,भरे  नदी नद  ताल।।


प्राणों  का  आधार  है,   निर्मल सरिता    नीर।

जीव  जंतु  तरु  बाग  वन,पियें धरे उर   धीर।।

सिंचन से शुभ  नीर से,तृषा तृप्त कर  आज।

सावन आया झूमकर, सजा धरणि नव  साज।।


सावन  में  नद ताल सरि  ,देते  हैं नव  ताल।

सूखे   जेठ  अषाढ़ में,बदल गया अब  हाल।।

ताल  नदी मिल  कर रहे,आपस में  संवाद।

तू  भी  मेरे  साथ में, चल- चल  रहे न  गाद।।


पोखर ताल तड़ाग सरि,सजल मेह की धार।

सावन  भादों   झूमते, कभी  न  मानें हार।।

पोखर ताल तड़ाग  में,खिलते कमल सुभोर।

अमराई   में   नाचते ,   रिझा   मोरनी   मोर।।


माटी   का  चंदन   लगा,  चले वीर  रणधीर।

रक्षा   करने  देश   की,सुरसरि का पी  नीर।।

माटी  का   निर्माण है, मानव की यह   देह।

समझ नहीं  लेना इसे,अपना अविचल   गेह।।


                  एक में सब

नदी ताल पोखर सभी,भरे हुए शुभ  नीर।

माटी का आधार है,  महके   सुघर  उशीर।।


शुभमस्तु !


24.07.2024●3.15प०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...