318/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मात-पिता का मान रख,रहती नित अनुकूल।
संतति वही महान है, उन्हें न जाए भूल ।।
पहली गुरु जननी सदा,गुरुवर जनक द्वितीय,
सिखलाया कंधे चढ़ा,वह पाटल का फूल।
अगर कहीं भगवान हैं, मात -पिता साकार,
आजीवन लेता रहे, जननी पितु पद धूल।
रखे कोख में मास नौ, सोती गीली सेज,
देवी जननी पूज्य नित, करे न मूल्य वसूल।
अँगुली थामे हाथ में, सिखा रहा पद - चाल,
जन्म - जन्म पितु धन्य हैं,अर्पित हुए समूल।
आजीवन ऋण भार से, मुक्त न हो संतान,
सुरसरि के वे घाट दो,शांत सुखद दो कूल।
'शुभम्' धरा ही स्वर्ग है,मात-पिता के रूप,
शब्द न उनसे बोलना, उलटे ऊलजलूल।
शुभमस्तु !
21.07.2024●11.00प०मा०
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