शनिवार, 27 जुलाई 2024

पहली गुरु जननी सदा [ दोहा गीतिका ]

 318/2024

        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मात-पिता का मान रख,रहती नित अनुकूल।

संतति  वही  महान है,  उन्हें   न जाए  भूल ।।


पहली  गुरु  जननी सदा,गुरुवर जनक द्वितीय,

सिखलाया  कंधे  चढ़ा,वह  पाटल का   फूल।


अगर   कहीं  भगवान  हैं, मात -पिता साकार,

आजीवन   लेता   रहे,  जननी   पितु पद धूल।


रखे   कोख    में  मास  नौ, सोती गीली   सेज,

देवी जननी   पूज्य  नित, करे  न मूल्य   वसूल।


अँगुली   थामे   हाथ  में, सिखा रहा पद - चाल,

जन्म - जन्म   पितु  धन्य   हैं,अर्पित हुए  समूल।


आजीवन  ऋण  भार  से, मुक्त  न हो   संतान,

सुरसरि  के  वे  घाट  दो,शांत सुखद दो   कूल।


'शुभम्'  धरा  ही  स्वर्ग  है,मात-पिता के  रूप,

शब्द  न    उनसे   बोलना,  उलटे ऊलजलूल।


शुभमस्तु !

21.07.2024●11.00प०मा०

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