298/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
विवेक ने आँखों पर
पट्टी बाँध रखी है,
बिना किए कर्म
बाबाओं की कृपा से
सब कुछ मिल जाए,
यही अंतिम उपाय।
न पढ़ना जरूरी
न श्रम ही जरूरी
बाबाजी करें
उनकी माँगें सब पूरी,
सेवादारों की चाँदी
वे काट ही रहे हैं।
कहाँ जा रहा है
ये समाज,
रूढ़िवादिता की खाज
खुजाए जा रहे हैं,
भेड़ ही तो हैं
कुएँ में
चले जा रहे हैं।
क्या करे प्रशासन
चप्पे-चप्पे पर
क्या पहरा बैठा दे!
भरा हो जहाँ
निकम्मापन
उसको घर बैठे
राशन दिला दे!
नंगे बदन को
कपड़े सिला दे!
ये इक्कीसवीं सदी है,
आदमी - आदमी की अक्ल
जुदी -जुदी है,
सब कुछ बाबाओं की
कृपा से मिले,
तो कोई भी हाथ- पैर
क्यों यों हिले?
गिरें स्वयं ही गड्ढे में
प्रशासन से शिकवे -गिले,
विरोधी नेता गण
कितने खिले?
फ़टे में अँगुली
डालने के मौके तो मिले!
शुभमस्तु !
04.07.2024●3.00प०मा०
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