मंगलवार, 30 जुलाई 2024

भानु से सारा अगजग [सजल ]

 325/2024

     

समांत       :  आरी

पदांत         :   अपदांत

मात्राभार    :   16.

मात्रा पतन  :   शून्य


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अरुण  तेज  की    महिमा  न्यारी।

जगमग    है    ये  दुनिया    सारी।।


अन्न    दूध    फल    सब्जी   देता।

खिल  उठती  धरती  की   क्यारी।।


हुआ   भोर     उग   आया  सूरज।

जाग  उठी    है    प्रकृति    प्यारी।।


नीड़    छोड़   कर   जाग उठे खग।

बिस्तर   त्याग  चले    नर -  नारी।।


सुमन  खिले   कलियाँ    मुस्काईं।

जड़ -  चेतन   में नव    उजियारी।।


सोना    चाँदी     मरमर     पत्थर।

क्या  न भानु    के  कारण  जारी।।


'शुभम्'  भानु  से   सारा अगजग।

करता  खेल   जटिलतम    भारी।।


29.07.2024●4.30आ०मा०

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