306/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
'अहं ब्रह्मास्मि'
मैं साकार ब्रह्म हूँ
में ईश्वर हूँ
मुरदों को जिंदा करता
अपनी चरण धूल से
भक्तों को उद्धरता।
मैं चमत्कार हूँ,
भक्तों को स्वीकार्य हूँ,
मेरी वाणी वरदान है,
मेरी जय जयकार हो,
अंधों का आभार हो।
स्वतः बरसते हैं
अंधों के हाथों नोट,
भला फिर माँगना क्या?
मेरे नलों से
निकलता है अमृत,
फिर इधर उधर
झाँकना क्या ?
आस्था रखो
अमृत चखो,
सत्संग में आते रहो,
अपने को भरमाते रहो,
ढोंगी मत कहो।
कलयुग मिटा दिया है
सतयुग मैं ही लाया,
अंधों पर चक्र चलाया,
जो भक्तों को दृश्य है,
साक्षात अवतार हूँ,
बाँटता मैं प्यार हूँ,
मैं 'शुभम्'उजियार हूँ,
'अहं ब्रह्मास्मि'।
शुभमस्तु !
11.07.2024●8.30प०मा०
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