बुधवार, 17 जुलाई 2024

तरुवर - सेवा धर्म हमारा [ गीत ]

 310/2024

        

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अपनी संतति 

के समान ही

तरुवर - सेवा धर्म हमारा।


धरती माँ के

अगम गर्भ से

हुआ  अंकुरित पौधा छोटा।

बूँद -बूँद 

जल की आशा में

पी जाता जी भर कर लोटा।।


मुरझाए पल्लव

करते हैं

जल याचन का एक इशारा।


होकर बड़ा

छाँव वह देगा

फूल - फलों से भरा खजाना।

सेवा अगर

नहीं की तरु की

तुम्हें   धरा  में  पड़े  समाना।।


तृप्त करे

नयनों को तरु की

हरियाली का सघन सहारा।


आओ 'शुभम्'

लगाएँ पौधे

ये  उज्ज्वल भविष्य हैं तेरा।

पाँच रूप में

सेवा करता 

कभी न करता तेरा - मेरा।।


वर्षा का कारण

हर पौधा

निर्भर मानव जीवन सारा।


शुभमस्तु !


16.07.2024●6.30 आ०मा०

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