316/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पानी से शुभ मेल किया।
एक अनौखा खेल किया।।
फिर भी कहते दूध मुझे,
नित मिश्रण की जेल जिया।
नर - नारी तक शुद्ध नहीं,
इसीलिए तो फेल किया।
अन्न दाल फल सब्जी ने,
पाप मनुज का झेल लिया।
संस्कार संकरता का,
घी में चर्बी तेल दिया।
अश्व - लीद है धनिये में,
सब कुछ जन ने झेल लिया।
'शुभम' कहाँ तक करें बयान,
पानी भरा उँड़ेल दिया।
शुभमस्तु !
21.07.2024●10.00आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें