304/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
गया ग्रीष्म पावस ऋतु आई।
चलती पछुआ या पुरवाई।।
घटाटोप बादल नभ छाए।
चमके बिजली जल बरसाए।।
बूँद - बूँद कर बरसे पानी।
भीगे चूनर साड़ी धानी।।
आई बाढ़ धरा पर भारी।
डूब रहीं हैं कारें सारी।।
जिधर दृष्टि जाती है मेरी।
बजे घटाओं की रणभेरी।।
गाँव विटप वन डूबे सारे।
सरिता के दिखते न किनारे।।
लगता प्रलय भयंकर आई।
दुखी हुए सब लोग - लुगाई।।
परेशान हैं कारों वाले।
पड़े हुए बचने के लाले।।
जैसे कोई चले सुनामी।
पवन हुआ जल का अनुगामी।।
पवन दे रहा बड़े झकोरे।
जल में उठते प्रबल हिलोरे।।
नगर गाँव अब दिखे न कोई।
सागर में ज्यों प्रकृति डुबोई।।
दिन में छाया सघन अँधेरा।
लगता श्यामल नवल सवेरा।।
'शुभम्' मौन सब खंभ खड़े हैं।
बिजली के जो अवनि गड़े हैं।।
अति सबकी वर्जित ही होती।
वर्षा हो या बरसें मोती।।
शुभमस्तु !
09.07.2024●8.30आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें