308/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बादल लगे गगन में छाने।
शुष्क धरा को नित्य रिझाने।।
पावस की ऋतु आई पावन,
कोकिल लगा आम तरु गाने।
आया है आषाढ़ मनोहर,
ग्रीष्म पड़ा चित चारों खाने।
हरी - हरी हरियाली की छवि,
लगी लुनाई भू पर लाने।
बालक निकले ग्राम - गली में,
बरसा पानी लगे नहाने।
अँधियारे में चमके जुगनू,
मेढक टर्र - टर्र टर्राने।
वीर बहूटी एक न दिखती,
नहीं केंचुए जाते जाने।
हर्षित हैं किसान नर - नारी,
लगे खेत पर वे सरसाने ।
रक्षाबंधन पर्व श्रावणी,
बहनें सारी लगीं मनाने।
वर्षा रानी का स्वागत है,
'शुभम्' अन्न के बोता दाने।
शुभमस्तु !
15.07.2024●5.00आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें