321/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सुविधाभोगी
जनगण सारा
सुविधाभोगी शब्द हो गए,
व्याकरण निःशब्द
करे क्या !
राजमार्ग तज
पगडंडी पर
चलते जाते लोग,
कोई रोके - टोके किंचित
आँख तरेरें खूब।
शुद्ध शुद्धि को
क्यों अपनाना
मनमानी अभिचार,
करना नहीं विचार,
कविता है लाचार।
बात करो मत
संविधान की
बदल गई हर चाल,
चाल-चलन की
कुछ मत पूछो
है साहित्य निढाल,
फैला मछली- जाल।
सत्य मतों पर
आधारित अब
झूठों का ही रंग,
युग बदला
साहित्य बदलता
कोरी दंगमदंग।
'शुभम्' सत्य
खूँटी पर लटका
बहुमत का ही खेल,
हाँ में हाँ भरना
मजबूरी
झेल सको तो झेल,
बेच रहा सच तेल।
शुभमस्तु !
26.07.2024● 1.00आ०मा०
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