305/2024
[मेघ,फुहार,बिजली,गाज,बाढ़ ]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
मेघ मल्हारों में मगन,मोहित मंजुल मोर।
पावन पावस सावनी, मनभावन है भोर।।
मेघ सलोने साँवरे, सरसाये शुभकार।
सरिता सर सानंद हैं,पावस का उपहार।
शोभन सावन सोहता,सर-सर सृजित फुहार।
सरिता को यौवन चढ़ा,बरसे मेघ उदार।।
मुरझाए तरु बाग वन, सरसे परस फुहार।
मन मयूर नर्तन करे, जागृत देह खुमार।।
बिजली दौड़ी देह में, अंग - अंग बेचैन।
जिस पल दो से चार हो,मिले नैन से नैन।।
बिजली बादल वारि का, वर्षा में सम्बंध।
विलग नहीं पल मात्र को, सौंधी -सौंधी गंध।।
बीता है आषाढ़ भी, गिरी कृषक पर गाज।
बूँद नहीं जल की गिरी,बिगड़ गया सब साज।।
गिरे न नर के भाग्य में,कभी पतन की गाज।
कर्मों का संज्ञान ले, कल परसों या आज।।
यौवन ऐसी बाढ़ है, तोड़ किनारे धार।
बीहड़ में बहती फिरे,नर जीवन हो क्षार ।।
उचित यही उपचार हो,आ जाए यदि बाढ़।
सावधान रहना सदा,श्रावण मास अषाढ़।।
एक में सब
बिजली मेघ फुहार का,सघन सजल सम्बंध।
गाज बाढ़ हितकर नहीं,चलती हैं बन अंध।।
शुभमस्तु !
10.07.2024●3.30आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें