295/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
नभ में छाए
घन कजरारे
उमड़- घुमड़ मनभावन।
आशाओं की
डोर थामकर
झूम उठा मन मेरा।
पूरब पश्चिम
उत्तर दक्षिण
बना हुआ घन घेरा।।
आषाढ़ी दौंगरे
लरजते
आने वाला सावन।
देख घुमड़ते
मक्खन-लौंदे
मन करता हम खालें।
उछलें ऊपर
उचक पाँव पर
उड़ता मक्खन पालें।।
याद सताए
विरहनियाँ को
अपना पिया रिझावन।
कृषकों के
मन में घुमड़ाईं
आशाओं की बदली।
नभ की ओर
निहार रहे हैं
गीत गा रही कमली।।
बना रही हैं
बूँदें झर-झर
'शुभम्' धरा को पावन।
शुभमस्तु !
02.07.2024●4.45आ०मा०
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