317/2024
समांत : ऊल
पदांत :अपदांत
मात्राभार : 24.
मात्रा पतन :शून्य।
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मात-पिता का मान रख,रहती नित अनुकूल।
संतति वही महान है, उन्हें न जाए भूल ।।
पहली गुरु जननी सदा,गुरुवर जनक द्वितीय।
सिखलाया कंधे चढ़ा,वह पाटल का फूल।।
अगर कहीं भगवान हैं, मात -पिता साकार।
आजीवन लेता रहे, जननी पितु पद धूल।।
रखे कोख में मास नौ, सोती गीली सेज।
देवी जननी पूज्य नित, करे न मूल्य वसूल।।
अँगुली थामे हाथ में, सिखा रहा पद - चाल।
जन्म - जन्म पितु धन्य हैं,अर्पित हुए समूल।।
आजीवन ऋण भार से, मुक्त न हो संतान।
सुरसरि के वे घाट दो,शांत सुखद दो कूल।।
'शुभम्' धरा ही स्वर्ग है,मात-पिता के रूप।
शब्द न उनसे बोलना, उलटे ऊलजलूल।।
शुभमस्तु !
21.07.2024●11.00प०मा०
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