बुधवार, 17 जुलाई 2024

जलदाता ही जलद है! [ दोहा ]

 314/2024

         

[जलद,बादल,जलधर,पयोधर,वारिधर]

 

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


               सब में एक

जलदाता ही जलद है,जल जगती का प्राण।

सौ  में  सत्तर  भाग  है, करे जगत का   त्राण।।

जल भरने  सागर  गया,जलद बड़ा  ही  धीर।

बरसा  सर   संसार  में,  सरिता पोखर   तीर।।


दल बल  अपने  साथ  ले,आए बादल श्याम।

कृषक  गगन  में  ताकता, बरसो  मेरे   राम।।

बादल गर्जन   कर   रहे, बोल  रहे   हैं   मोर।

सर-सर-सर   बूँदें   झरें, उधर  साँवला  भोर।।


जलधर जल   धारण  करे,ढूँढ़े शुभ  औचित्य।

मानसून  बन  शून्य में, भ्रमण  करे वह   नित्य।।

सब जलधर को  चाहते,खग तरु ढोर किसान।

हरी  पहनती   शाटिका, मेदिनि मातु   महान।।


पिया पयोधर  प्यार  से,जननी का  ऋणभार।

आजीवन  उतरे    नहीं,   जीवन  का उपहार।।

प्रियल   पयोधर शून्य में,चले बिना   ही  यान।

लगा   कैमरा    देखते,  किसे   कराएँ   पान।।


नित्य  वारि  धारण  करें,सघन वारिधर  सेत।

गलबाँहीं   दे    झूमते,  अंबर     में समवेत।।

विरल वारिधर मौन हो,अस्ताचल    के पास।

इंद्रधनुष    ले   नाचते,  रक्त पीत रँग घास।।

                 एक में सब

मेघ जलद बादल सभी,जलधर के शुभ नाम।

कहें  'शुभम्' अब वारिधर,करें पयोधर  प्राम।।


*प्राम =सामूहिक नृत्य।


शुभमस्तु !


16.07.2024●11.00प०मा०

                 ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...