शनिवार, 27 जुलाई 2024

आदमी और कूड़ा [ व्यंग्य ]

 323/2024

                  

©व्यंग्यकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

आदमी का कूड़े के साथ चोली- दामन का संबंध है।यह तो हो ही नहीं सकता कि जहाँ आदमी पाया जाए और कूड़ा न पाया जाए! कूड़ा तो आदमी के आगे-पीछे,ऊपर-नीचे , अगल-बगल ;यहाँ तक कि उसके अंदर - बाहर भी कूड़ा भरा हुआ है। जब कूड़े से आदमी का इतना आत्मीय और निकट का संबंध है,तो  उसका कूड़ा-प्रेम स्वाभाविक ही है। उसे मिटाया नहीं जा सकता। यद्यपि वह जीवन भर कूड़ा पैदा करता है,उसे नष्ट भी करता है ;किन्तु कभी भी जीवन भर कूड़ा- मुक्त  नहीं हो पाता। यहाँ तक कि एक दिन ऐसा भी आता है कि वह अपने परिजनों के लिए स्वयं कूड़ा बन जाता है।और उस कूड़ा बने हुए आदमी को हटाने में कोई विलम्ब भी नहीं किया जाता।आदमी की देह के कूड़ा -निस्तारण को अंतिम संस्कार की संज्ञा दी जाती है।

प्रत्येक आदमी के कूड़ा-उत्पादन के अलग-अलग रूप ,प्रकार और श्रेणियाँ हो सकती हैं।जब आदमी इस धरा धाम पर आया है,तो साथ में कुछ न कुछ कूड़ा लेकर भी आया है।अत्याधुनिक आदमी कूड़े से ऊर्जा का उत्पादन भी कर रहा है।लेकिन अधिकांश लोग तो ऐसा कर नहीं सकते। अन्यथा यह कूड़ा ही उनके जीने की समस्या पैदा कर सकता है।इसलिए उसका निस्तारण भी अनिवार्य हो गया है।हमारे यहॉं कुछ ऐसे लोग भी उत्पन्न हो गए हैं ,जो भले ही देश और समाज के लिए स्वयं कूड़ा हैं,किन्तु अपना कूड़ा दूसरे के दरवाजे पर फेंक आने में कुशल हैं।इस कार्य को सुगम करने के लिए वे रात के अँधेरे और एकांत आदि का सहारा लेते हैं।बस उन्हें अवसर की तलाश है कि कब किसी की आँख से बचे कि उन्होंने अपना कूड़ा किसी पड़ौसी के  दरवाजे पर फेंका! फिर क्या है ,जब फेंकना था तो फेंक ही दिया ।अब बाद में जो भी महाभारत होना हो तो हो।जब हल्ला मचेगा ,तो वे चुप्पी साधे अपने घर के बिल में घुस जाएँगे और चुपचाप घर के कोने या किवाड़ों के पीछे खड़े होकर सुनेंगे कि कौन क्या कह रहा है। कहीं कोई उनका नाम तो नहीं ले रहा!अब यदि कोई नाम लगा भी रहा हो तो अब तो अपनी सहन शक्ति का परिचय देना उनकी मजबूरी और मजबूती हो जाती है।इससे उनकी सहन शक्ति परीक्षा भी हो लेती है और यदि सहन नहीं कर पाए तो कुंडी खोलो और निकल पड़ो जंग के मैदान में कि कूड़ा हमने नहीं फेंका। देखो इस कूड़े में भिंडी के डंठल पड़े हैं और हमारे यहाँ आज उर्द की दाल बनी है। भला यह कूड़ा हमारा कैसे हो सकता है ? जिसके घर में भिंडी बनी हो ,उसके घर की तलाशी ली जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। अंदर से चोरी  और बाहर से सीनाजोरी! इसी को कहते हैं।

मैं यह बात पहले भी कह चुका हूँ कि यह आदमी रूपी जंतु जहाँ भी गया,कूड़ा ही  उत्पादित  करता  और फैलाता गया।जो जितना अधिक कूड़ा -उत्पादन करे,वह उतना ही सभ्य ,सुसंस्कृत,धनाढ्य और आधुनिक कहलाता है। पहाड़ों पर गया तो वहाँ प्लास्टिक की बोतलें, रेडीमेड फ़ूड के रैपर,मल मूत्र फैला कर आ गया।पिकनिक मनाने गया तो वहाँ भी वही हाल।यहाँ तक कि इस आदमी ने चाँद को भी कूड़े से वंचित नहीं छोड़ा।यदि वहाँ उसने कुछ छोड़ा तो बस कूड़ा ही छोड़ा।अभी मुझे चाँद पर जाने का अवसर नहीं मिला ,इसलिए अभी यह नहीं बतला सकता कि चाँद के चंद यात्रियों ने क्या- क्या कूड़ा छोड़ा?

आदमी का शरीर ही कूड़ा उत्पादन की एक अच्छी खासी फैक्टरी है।जिससे वह हर पल हर दिन रात ,बारहों मास कूड़ा बनाता और निष्कासित करता रहता है।इसके लिए उसने हर घर में बाकायदे स्नान घर, शौचालय,मूत्रालय, कूड़ेदान आदि साधन बना रखे हैं।कोई -कोई तो इन कार्यों के लिए खेतों का सहारा लेते हैं। वैसे तो इस देश में प्रत्येक स्थान लघुशंका निवारण स्थान है ही।जहाँ  दीवार पर लिखा हो : 'गधे के पूत ,यहाँ मत मूत।' तो उस स्थान पर अनिवार्यता हो जाती है, क्योंकि  इस देश के आम आदमी  का  आम चरित्र  भी यही है कि जिस काम को करने के लिए प्रतिबंध लगाया जाए, उसे जरूर करो।  बस वह इसी सिद्धांत को गाँठ में  बाँधे हुए चल पड़ा है।

कुछ लोगों का जन्म ही कूड़ा फैलाने के लिए हुआ है।नेता अपने भाषणों, आश्वासनों,वादाख़िलाफियों ,झूठों, अत्याचारों और शोषणों का कूड़ा देश भर में फैला रहे हैं,यह किसी से छिपा हुआ नही है। व्यभिचारी व्यभिचार का कूड़ा और स्वेच्छाचारी स्वेच्छाचार का कूड़ा फैलाकर देश और समाज को दूषित कर रहे हैं। भौतिक कूड़े का निस्तारण सम्भव है,किन्तु मानसिक और क्रियात्मक कूड़े का निस्तारण कैसे हो ? यह एक चिंतनीय विषय है।बेईमानी का कूड़ा उत्पादित और फैलाने वालों का प्रतिशत इतना अधिक है कि लगता है ये आदमी और देश की ईंट ईंट में बेईमानी भरी हुई है।समाज मे हो रहे झगड़े -फसाद, कचहरियों के मुकदमे इतने अधिक कि न्यायाधीशों को कूड़ा निस्तारण में  युग बीत जाएँगे,किन्तु आदमी का यह कूड़ा कभी समाप्त नहीं हो सकेगा।आदमी में बेईमानी की  एक ऐसी अटूट शृंखला है कि वह अमरौती खाकर आई लगती है।झूठ है तभी तो सत्य जिंदा है ,वरना सत्य को कौन पूछता है? बेईमानी के कूड़े से  ही ईमान जिंदा है। 

शुभमस्तु !

27.07.2024●9.30 आ०मा०


                     ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...