302/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
वर्षाकाल बरसते बादल।
बूँद -बूँद जल झरता निर्मल।।
कायाकल्प हुआ वसुधा का ,
हरियाली छाई है अविकल।
आया है आषाढ़ महीना,
धूप हुई मेघों में ओझल।
बहती त्वरित वेग से सरिता,
लहरें उठतीं करती चल -चल।
नाले - नाली बहा ले गए,
भरा हुआ जो काला दलदल।
कहीं आ रही कलकल की ध्वनि,
कहीं बह रहा पानी छलछल।
पावस 'शुभम्' बनी ऋतुरानी,
ऊपर - नीचे है वर्षाजल।
शुभमस्तु !
08.07.2024●1.45आ०मा०
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