बुधवार, 17 जुलाई 2024

आया है आषाढ़ महीना [ गीतिका ]

 302/2024

       

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


वर्षाकाल       बरसते      बादल।

बूँद -बूँद   जल  झरता   निर्मल।।


कायाकल्प   हुआ   वसुधा   का ,

हरियाली   छाई    है  अविकल।


आया    है     आषाढ़     महीना,

धूप    हुई   मेघों    में   ओझल।


बहती   त्वरित  वेग   से  सरिता,

लहरें  उठतीं    करती चल -चल।


नाले -   नाली    बहा    ले   गए,

भरा  हुआ जो  काला   दलदल।


कहीं आ रही कलकल की ध्वनि,

कहीं  बह रहा  पानी   छलछल।


पावस   'शुभम्'  बनी   ऋतुरानी,

ऊपर  -   नीचे    है     वर्षाजल।


शुभमस्तु !


08.07.2024●1.45आ०मा०

                    ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...