303/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अंधी जनता के लिए,किसका है दायित्व।
पदरज से पावन करे, अपना जीवन सत्व।।
स्वयं बना भगवान जो,कहता हरि साकार।
चूहे के बिल में छिपा,डाल नोट के हार।।
चट्टे बट्टे एक ही, थैली के सब लोग।
सेवक या साकार हो,चले कठिन अभियोग।।
सुंदर बाला षोडशी, सेवा में तैनात।
दैहिक सेवा लीन हैं,निशिदिन साँझ प्रभात।।
स्नान करे नित दूध से, बने उसी की खीर।
अंधे भक्तों में बँटे, ये कलयुग के पीर।।
पैसा एक न दान का, छूता है साकार।
सम्पति लाख करोड़ की,आश्रम सजी अपार।।
अंधभक्ति के खेल में,शामिल लाख हजार।
फौज बड़ी चंदा करे, पहले मंगलवार।।
नारी ने ही धर्म का, झंडा किया बुलंद।
भेड़ें ज्यों अंधी गिरें, पढ़ें भक्ति के छंद।।
अमृत नल से गिर रहा,भर- भर हुईं पवित्र।
पदरज से ज्यों मोक्ष का,छिड़क रहा है इत्र।।
लूट मची भगवान की, लूट सको साकार।
आ जाओ सत्संग में, तिया संग भरतार।।
चमत्कार से सब मिले,करना फिर क्यों काम।
दो धक्का पति को लगा, पहुँचो बाबाधाम।।
शुभमस्तु !
08.07.2024●10.15आ०मा०
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