क्यों न छिपाए दर्द कोई,
क्या कोई हलका करता है?
जब पूछे मुझसे हाल बता ,
सब बढ़िया कहना पड़ता है।
किस-किस को सच मैं बतलाऊँ,
बस झूठ बोलना पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....
अधरों पर लाता मुस्कानें,
वाणी भी मीठी होती है।
सपने - से चलते जीवन की,
गति धीमी - धीमी होती है।।
भीतर तो होती घबराहट,
पर शान्त दिखाना पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....
किसने देखे किसके आँसू,
सुनने का किसको समय यहाँ,
घुट - घुटकर पीड़ा सहता हूँ,
इंसां में ऐसा हृदय कहाँ ??
उठता है अंतर में उबाल,
पर मौन साधना पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....
वेदना हृदय की अगर कहूँ ,
कुछ मन ही मन में हँसते हैं।
कुछ कहते कर्मों का फ़ल है,
ज़ख्मों पर नमक छिड़कते हैं।।
जिसका होता जैसा चरित्र,
वैसा ही उसको दिखता है।
जब पूछे मुझसे....
कुछ कहते पाप किया पहले,
उसका ही दंड भोगता है।
मैं रोता अश्क़ लहू वाले
लोगों को यही शोभता है।।
सबको अपना अपनों का ही,
बस दर्द दिखाई पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....
ये नहीं सोचता व्यक्ति यहाँ,
दिन सबके- उठते - गिरते हैं।
जब एड़ी फटतीं हैं अपनी,
तब हाय- हाय सब करते हैं।।
दानव के दिल में दानव को,
सौ फ़ीसद रहना पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....
मरहम तो सभी चाहते हैं,
पर नमक लगाते घावों पर।
इससे सुख उनको मिलता है,
करते न नियंत्रण भावों पर।।
सोचे - समझे बिन जो कहते,
पछताना उनको पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....
बसती हैं खुशियाँ मिट्टी में,
सरिता में दुख भी बहता है।
जब पूछेगा जो हाल कोई,
सब ठीक 'शुभम' ये कहता है।।
सबके दिन आते - जाते हैं,
सुख दुःख भी सहना पड़ता है।।
जब पूछे मुझसे....
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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