गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

शरद की सुबह [अतुकान्तिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🌄 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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शरद की सुबह 

खोलती नयन,

त्यागकर शयन,

रजनी का अयन,

मौन वाणी का 

गीत गुंजन।


पखेरूओं के गीत,

कुकुड़ कूँ करते मुर्गे का

करती मुर्गियाँ अनुगमन,

मंद - मंद सरित - कलरव,

भास्कर का लाल-लाल गोला,

कितना भोला,

अनबोला,

बिखेरता प्रकृति पर

स्वर्णिम प्रकाश,

जीवों के जीवन की आस,

जगत का निर्माता रवि,

शून्य में विचरता कोई कवि,

रचता रसभरी  कविता 

उदीयमान सविता।


खेत, बाग, वन,

निहारते नयन ,

प्रफुल्लित मन,

परब्रह्म का लघु दर्पण,

जगती, अम्बर, सागर का

कण -कण 

उल्लसित ,उमंगित,

प्रमन।


वेला ब्रह्ममुहूर्त की

अमृत की वर्षा ,

जड़ -चेतन का

कण -कण हर्षा,

जो जागा,

वही सुभागा,

सुप्त रहा जो

सदा अभागा,

देह में स्वतः स्फुरण

स्पंदन ,

प्रभु चरणों में

कर वंदन,

शरद की सुबह का

अभिनंदन।


सरिता में 

मछलियों का नर्तन,

अहर्निश जागरण,

सागर गंभीर प्रशांत,

जलागार विस्तृत अश्रान्त,

अम्बर में खगदल का

उड्डयन ,

बाग में मयूर -नर्तन,

मोरनी का होता सम्मोहन,

मानसरोवर में हंस,

निर्मल ज्ञान का अंश,

चुगता मुक्ता कण,

क्षण -क्षण।


पनघट पर 

घट - अंबार,

बेशुमार,

नारियों के स्वर,

ज्यों बाग में

कीर के मधुरव,

नहीं है अब,

लहराती नई फसलें,

देख हर्षित कृषक मन,

सींचता जैसे 

अपनी गृहस्थी के 

कण -कण अनुदिन।


शरद की सुबह

अति मनोहर ,

प्रकृति में चमत्कार,

अलौकिक शांति का

साम्राज्य ,

अभिभाज्य,

बढ़ती हुई शनैः - शनैः 

कभी भी 

नहीं रुकने के लिए।


  💐शुभमस्तु ! 


03.12.2020◆ 11.15पूर्वाह्न।

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