गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

जनता आलू -कंद [कुण्डलिया]


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✍️ शब्दकार ©

🦢 डॉ. भगवत स्वरूप  'शुभम'

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                   -1-

जनता आलू- कंद है,रहती सबके  साथ।

गोभी बैंगन मटर सँग,होता उसका हाथ।।

होता  उसका हाथ,  कूटकर पापड़  बेलें।

काटें  सुंदर चीप,चमक रैपर की    झेलें।।

'शुभम'न मौका चूक,काम जब तेरा बनता।

'जाय भाड़ में देश', यही कहती है जनता।।


                  -2-

जनता    आलू-  कंद  है,होती है      बेस्वाद।

यदि  गोभी  के साथ हो,गोभी हो  आबाद।।

गोभी   हो     आबाद, तरसते बैंगन    सारे।

पड़े - पड़े  ललचाएँ , पड़े हैं नदी  किनारे।।

'शुभम' रसीला झोल,कभी है सूखा  बनता।

जितना दो गुड़ डाल,मधुर हो उतनी जनता


                      -3-

जनता   आलू -  कंद है,ऊपर माटी    धूल।

कब वह किसके साथ हो,कब जाएगी भूल।।

कब   जाएगी भूल, किसे सिर पर   बैठाए।

किसको दे संन्यास,किसे कुर्सी   दे  जाए।।

'शुभम'न समझें भेड़, ऊन से कंबल बनता।

करती यही कमाल, मतों से मारे  जनता।।


                 -4-

जनता आलू  -  कंद है, लुढ़के गोल  मटोल।

चाहे कोई मोल दो ,बिक जाए बे  -   मोल।।

बिक  जाए बे - मोल,बनाए गर्दभ   राजा।

कहते नेता लोग,  हमारे सँग में  आ   जा।।

'शुभं'न समझें चाल,काल आलू जब बनता।

अटक कंठ के बीच,हँस रही आलू जनता।।


                   -5-

जनता   आलू -  कंद   है, मोटे छिलकेदार।

छिलका हटता है तभी,पता लगे किरदार।।

पता  लगे  किरदार, छीलने वाला   जाने।

है वह जड़ मतिमंद,उसे जो अपना   माने।।

'शुभम'मटर के साथ,और ही सरगम बनता।

धुँधली  धूल  गुबार , भरी है आलू  जनता।।


💐 शुभमस्तु !


31.12.2020◆4.00अपराह्न

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