रविवार, 20 दिसंबर 2020

आदर्शों के फूल [ दोहा ]

  

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✍️ शब्दकार©

🛣️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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आदर्शों  के  फूल हैं, जड़ में भरा   दहेज।

परिणय करना पूत का बिछा मखमली सेज।


मुख में जपना राम रट, मन में मात्र दहेज।

भले  खेत  घर  बेच  दो,हमें गड्डियाँ  भेज।।


पिता,पुत्र का बन गया,लेने का   अधिकार।

ऊपर से उसको मिला,बना किसी पर भार।।


नारी, नारी  पर करे, बढ़ -  चढ़ अत्याचार।

माँगे प्रथम दहेज़ वह,ए सी फ्रिज़ औ'कार।।


मौन स्वीकरण बाप का,मन में चाह दहेज़।

बचा रहेआदर्श भी,अर्धांगिनि को  भेज।।


बलि का बकरा बन रहा,हर बेटी का बाप।

पैमाना सुत जनक का,करता छोटी  नाप।।


अगर नहीं धी सम रही,क्या समधी संबंध।

एक जमा आकाश में,एक धरा की  गंध।।


दायज़ को अनुचित कहें,देते पर- उपदेश।

मन में भाव दहेज़ के,हिलें नाग से  केश।।


सुख टूटा गृह शांति भी,दानव बना  दहेज़।

छप्पर छानी बिक गई,खबर सनसनीखेज।।


पुतहू के  माँ-बाप की,साँसें रोके    सास।

देवी क्यों इनको कहें,जो हैं यम की पाश।।


नारी आरी नारि की,बने ननद या  सास।

दायज़ की झोली बनी,बहू न आवे रास।।


💐 शुभमस्तु !


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