मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

गुलगुलों से परहेज़ [अतुकान्तिका]


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✍️शब्दकार©

🍁 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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गुड़ खाएँ 

गुलगुलों से परहेज़!

रखी है अपनी

विचित्र खिचड़ी संस्कृति सहेज,

जिसे  कहें वेज

चाहें कहें नॉनवेज!


जीवन का हर काम

चलता ईस्वी सन से

सुबह से लेकर शाम!

पर विरोध के लिए

विरोध से

होता हमारा नाम! 

हिंदी तिथियों को

करना सरनाम ,

ईस्वी के

विशेष विरोध का पयाम,

देना ही हमारा काम।


ब्याह की होती

 जब चाह,

याद आ जाती 

हिंदी  तिथि

 माह  की राह,

परंतु आमंत्रण पत्र में

रहती जरूर 

अंग्रेज़ी तारीख।


स्कूल,कॉलेज,ऑफ़िस,

ट्रेन, बस , वायुयान,

सेवा , व्यवसाय ,अदालत,

कमाई हुई आय,

कर, हाय! हाय!

टाटा बाय! बाय!!

सबमें

अंग्रेज़ी तारीख की 

दवाई,

पिलाई जाती घुट्टी में

अंग्रेज़ियत की चाय,

खाया जाता 

आजीवन गुड़ !गुड़ !!

और गुड़!!!

तब नहीं देखता 

पीछे मुड़ ,

बस अंग्रेज़ी का हुक्का 

होता रहता गुड़- गुड़!


रेल ,बस परिवहन,

या वायुयान,

विश्वविद्यालय की परीक्षा,

किंडर गार्टन के एग्जाम,

सबके टाइम टेबिल 

नहीं बनते

सावन सुदी सप्तमी,

फाल्गुन वदी नवमी,

अथवा  

कार्तिक  सुदी अष्टमी 

के काल दर्शक 

के अनुसार,

आता है नव वर्ष

तब कुछ

 लकीर के फ़क़ीर,

क्यों पकड़ने लगते

भूली हुई लकीर,

या कहें भुला दी गई

या भुला दी जा रही लकीर! 

तब याद आ जाती 

भूली हुई नानी की तरह

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 

अथवा

ऐसा ही कुछ -कुछ! 

बड़े ही प्रेम से

जीवन भर

 गुड़ खाने वाले

करते हैं 

गुलगुलों से परहेज़!

बस गुलगुलों से परहेज़!


💐 शुभमस्तु!


24.12.2020◆ 7.55 अपराह्न।

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