रविवार, 20 दिसंबर 2020

दायज़ [ कुण्डलिया ]

 

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©।

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

                     -1-

दायज़ हमें न चाहिए, मुख में यह  आदर्श।

पर मन में कुछ और है,करता तप्त अमर्ष।।

करता तप्त अमर्ष, पड़ा मध्यस्थ   रार   में।

कैसे निकले राह, नाव है फँसी   धार  में।।

शुभम ब्याह की बात,कहे क्याअपना वाइज़।

मुख से  बोले  राम,गले में अटका  दायज़।।


                     -2-

दायज़ की मख़मल बिछी,जो गूँगा नत नैन।

पिता,   पुत्र  का  सोचता, कैसे बोले    बैन।

कैसे  बोले   बैन,  ब्याह  तो करना   है   ही।

बची रहे मम लाज, बने वह क्यों सुत-सेही।।

'शुभम'न खोले ताश,तुरुप का अपना वाइज़।

मन में सुदृढ़ विचार, पुत्र-माँ चाहे दायज़।।


                      -3-

दायज़ को अनुचित कहें,देते पर-उपदेश।

मन मन भावें वे सभी,हिलें मुड़ी सँग केश।

हिलें मुड़ी सँग केश,सास झोली  फैलाती।

भरती पति के कान, बने  आँसू  औलाती।।

'शुभम' सुता बैचैन,नहीं अब कोई वाइज़।

अब भी लेआ कार,नहीं था तब यदि दायज़।


                     -4-

दायज़ से परिवार की ,टूट गई सुख शांति।

बेटी रोती रात-दिन,शेष नहीं मुख-कांति।।

शेष नहीं मुख-कांति,सुता माँ बाप  दुखारी।

ताने   मारे  सास,  न  लाई दायज़    दारी।।

'शुभम'कलह का धाम,मरे सब पहले वाइज़।

दायज़ की अति भूख,रटे सपने में  दायज़।।


                     -5-

दायज़ के मारे मिटे, कितने घर,परिवार।

घर,खेती को बेचकर,किया ब्याह-संस्कार।

किया  ब्याह- संस्कार ,उधारी ऐसी   भारी।

पड़े  पिता  बीमार, हुई  माता की   ख़्वारी।।

'शुभम'सताती सास,बहू को नित नाजायज़।

सुता -जन्म अपराध,नहीं दे पाए  दायज़।।

शब्दार्थ :

दायज़=दहेज।

वाइज़=नसीहत/उपदेश देने वाला।

दारी=महिलाओं की एक गाली।


💐 शुभमस्तु !


18.12.2020◆3.00अपराह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...