रविवार, 20 दिसंबर 2020

नहीं थकी अब भी [ अतुकान्तिका]


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✍️शब्दकार ©

🧕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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आजीवन ढोया भार

कभी उदर में

कभी कंधों पर,

समर्पित ही रही नारी

गूँगे,बहरों

और अंधों पर।


नहीं मिली है 

निजात,

निरंतर आघात पर आघात,

पर नहीं थकी

मुसम्मात।


बचपन से यौवन

यौवन में नवोढ़ा,

मुग्धा या ऊढ़ा,

पश्चात परिपक्व प्रौढ़ा,

और अब

बेदम देह की पीड़ा!

वृद्धता की दारुण क्रीड़ा,

फिर पीठ पर 

लादे हुए

लकड़ियाँ,

ईंधन का बीड़ा,

किस बात की

शेष रही व्रीड़ा?


दबती ही रही

बोझों तले,

भोर से लेकर

साँझ ढले,

कितना ही

धीमे चले,

पर रुकी नहीं,

चलती रही,

अपने सुखों की दाल

दलती रही,

नहीं कोई भी मलाल!

धैर्य धारिणी वृद्धा,

अकाल या दुकाल,

समय को छलती रही।


त्याग की देवी,

श्रम की पुतली

झुकी हुई कमर,

अब नहीं आते

गुंजारते भ्रमर

पर जूझती रही,

'शुभम'समर पर समर,

और देवी नारी

हो गई अमर।


💐 शुभमस्तु !

19.12.2020◆10.30पूर्वाह्न।


🧕🌹🧕🌹🧕🌹🧕🌹🧕

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