◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️शब्दकार©
🦜 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
नहीं चिचियाती गौरैया।
लता में नीड़ नहीं भैया।।
कोयल नहीं टेर अब देती।
झेंपुल की झंकार न एती।।
भजन कब करती पिड़कुलिया।
नहीं चिचियाती गौरैया ।।
घर की छत पर मोर न नाचे।
नहीं गुटरगूँ भरे कुलांचे।।
नहीं खग करते ता-थैया।
नहीं चिचियाती गौरैया ।।
पावस गई न आए खंजन।
विदा हुए कैसे मन रंजन।।
गई वट, पीपल की छैयां।
नहीं चिचियाती गौरैया।।
नहीं जगाती अब कुक्कड़ कूँ।
बुलबुल प्यारी नहीं फुदक फूँ ।
खगों की डूब रही नैया।
नहीं चिचियाती गौरैया।।
कागा कब मुँडेर पर बोले!
चंचु शगुन में कैसे खोले??
पपैया कहाँ गए भैया!
नहीं चिचियाती गौरैया।।
💐 शुभमस्तु !
03.12.2020◆2.45अपराह्न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें