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✍️ शब्दकार ©
🦩 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कलगी लगा मयूर की,देता मुर्गा बाँग।
कपट-भेद टिकता नहीं,करले कितना स्वांग।
टाँग देख शरमा रहा, अपनी मोर महान।
सबको सब कुछ है नहीं,यही रहस पहचान।।
भुस में आग लगा खड़ी, कूर जमालो दूर।
ताली दे - दे हँस रही, लूट मज़ा भरपूर।।
एक टाँग पर ध्यान में,बगुला खड़ा अधीर।
मछली आई दृष्टि में, टूट पड़ा बेपीर।।
दो बिल्ली के बाँट में,बंदर न्यायाधीश।
बिल्ली मुँह को ताकतीं,रोटी खाता कीश।।
सारस लोमश मित्रता, निभे न दिन दो चार।
कपट भरा मन में बड़ा,कैसे हो आहार??
लोमशजी ने खीर की,भरकर बड़ी परात।
रखी जीमने सामने,सारस समझा घात।।
देख सुराही खीर की, लोमशजी हैरान।
सारस ने बदला लिया, लौटा भृकुटी तान।।
आज शेर की माँद में,गीदड़ डाले टाँग।
खालओढ़कर शेर की,खुला ढोंग का स्वांग।
कौआ ओढ़े सित वसन,चला हंस की चाल।
भेद खुला जो वेश का,बना न काक मराल।।
साँप छुछून्दर मिल गए, असमंजस की बात।
कैसे उगले ले निगल,कहो साँप अब तात।
💐 शुभमस्तु !
15.12.2020◆5.45अपराह्न।
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