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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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किसी को तो अपना बना कर तो देखो
नेह का एक दीपक जला कर तो देखो।।
रोते भला क्यों धन औलाद को तुम,
प्रभु - पाद में उर लगा कर तो देखो।
'मैं' 'मैं' में खोया हुआ है जमाना,
निर्धन की कुटिया सजा कर तो देखो।
श्वान भी हर गली का उदर अपना भरता,
भूखे को रोटी खिला कर तो देखो।
सीधे जो होते वही पेड़ कटते,
टेढ़े जो खड़े हैं कटा कर तो देखो।
नारों से चलता नहीं देश कोई ,
प्रेम देश के हित उगा कर तो देखो।
'शुभम' देश को बेच भरते जो झोली,
दोमुँहे साँप का फन दबा कर तो देखो।
💐 शुभमस्तु !
26.12.2020◆7.30 अपराह्न।
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