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✍️ शब्दकार©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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धरती धीर किसान की,फसलें काटें और।
नेता आग लगा रहे, बुरा देश का दौर।।
राजनीति की रोटियाँ,ईंधन कृषक महान।
चूल्हों पर सिकने लगीं,मूँछें ऊँची तान।।
चोर- उचक्के देश के, बने हितैषी आज।
जनहित की निंदा करें,सभी चाहते ताज।।
नाम अन्नदाता रखा,बहका कर की लूट।
आतंकी उनमें घुसे,डाल परस्पर फूट।।
नहीं देशहित चाहते,बस कुर्सी की चाह।
आग लगाकर तापते, नेता बेपरवाह।।
ढाल बनाकर कृषक को,खेल रहे हैं चाल।
राजनीति कीचड़ सनी,कौवा बना मराल।।
कृषक,छात्र सब गोटियाँ,खेल वही शतरंज।
छल-पारंगत शकुनि हैं,कसते तीखे तंज।।
नहीं देशहित चाहिए,ध्येय लगाना आग।
चाहे उजड़े देश ये ,चाहे उजड़े बाग।।
जाति, धर्म में बाँटकर, करते देश विनाश।
विष के पौधे रोपते,नेता शून्य प्रकाश।।
सिंहासन पर आँख है,देश भक्ति का ढोंग।
ठगते सारे देश को,समझ सभी को पोंग।।
पंक सियासत का कभी, होता नहीं पवित्र।
डालें गंगाजल भले, चाहे छिड़कें इत्र।।
💐 शुभमस्तु।!
08.12.2020◆8.45अपराह्न
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