♾️♾️♾️♾️♾️♾️♾️♾️
✍️ शब्दकार ©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
♾️♾️♾️♾️♾️♾️♾️♾️
हर साल नया होकर आता।
मैं समय, सत्य का ही त्राता।।
मैं बुरा नहीं अच्छा होता।
अनवरत बहे मेरा सोता।।
अच्छा कोई बद बतलाता।
मैं समय,सत्य का ही त्राता।।
मैं ब्रह्म, सत्य का वाचक हूँ।
मैं नहीं जगत का याचक हूँ।।
यह सत्य तथ्य मैं समझाता।
मैं समय,सत्य का ही त्राता।।
सबके कर अलग तराजू है।
कुछ वाम दाहिनी बाजू है।।
सबको मैं नहीं कभी भाता।
मैं समय,सत्य का ही त्राता।।
सरिता में मुर्दे बहते हैं।
कुछ धार चीर कर रहते हैं।।
मुझको तो बस चलना आता।
मैं समय, सत्य का ही त्राता।।
मैं तो तटस्थ नित रहता हूँ।
यह गूढ़ सत्य मैं कहता हूँ।।
तव कर्म नए फल का दाता।
मैं समय,सत्य का ही त्राता।।
तुम ईश,काल,यमपाश कहो।
या धर्मराज का वास कहो।।
नीमों में आम नहीं लाता।
मैं समय,सत्य का ही त्राता।।
जिसको साला वह साल कहे।
जिसको माला वह माल कहे।।
मैं वर्ष, वर्ष में ही आता।
मैं समय,सत्य का ही त्राता।।
मैं 'शुभम'अशुभ कुछ भी मानो।
कर्मों का फ़ल मुझसे जानो।।
माया में मनुज भूल जाता।
मैं समय, सत्य का ही त्राता।।
💐 शुभमस्तु !!
29.12.2020◆4.30 अपराह्न
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें